दुनिया में कितने ऐसे लोग होते है जिसको सूइसाइड करना होता है या तो वह सूइसाइड कर लेते है। पूरे एक साल में 80,00000 से 10,00000 लोग आत्महत्या करते है। उस में ज्यादातर यूथ शामिल है। वह अपना काम करते करते अपनों के प्रति अपनी फैमिली के प्रति या देश के प्रति अपनी रेस्पिस्लिब्लिटी भूल जाते है। वह हार जाते है कमजोर हो जाते है। सोचने की बात तो ये है कि जो आने वाला कल बनने वाले है वहीं सूइसाइड करते है। एक्सपेक्टेशन इतनी प्यारी लगती है खुद पर इतनी हावी होने देते है कि हम उसको मार नहीं सकते ओर खुद को ही खतम कर देते है।
आपने यह तो सुना ही होगा कि सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग? लोग कहते है कि तू ऐसा है या तू ऐसी है तो क्या उसके कहने से ऐसे हो जाते है? साथ में यह भी पता होना चाहिए कि कुछ लोग कहेंगे लोगो का तो काम है केहना। शेक्सपीयर का एक फेमस प्ले है हेमलेट उसमे हेमलेट ऑफिलिया को गुस्से में कहता है गो टू ननरी। ननरी का मतलब है वह प्लेस जहां चरित्रहीन लोग रहते है और ननरी का दूसरा भी मतलब है प्लेस फोर प्योर वुमन। यह सुनकर ऑफिलिया उदास जाती है और सूइसाइड कर लेती है। क्या ऑफिलिया सामने कुछ बोल नहीं सकती? यह सब तो प्ले में हुआ है। पर ऐसा ही रियल लाईफ में भी होता है कोई एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का रिमोट बनना चाहता है उस पे कन्ट्रोल करना चाहता है। ओर धीरे धीरे प्रॉब्लम आने लगती है।
जो हम चाहते है वैसा होता नहीं ओर जो हम करते है उसको लोग चाहते नहीं ओर उसको ही हम इतना सोचते है कि हमारे अंदर कोई दूसरा खयाल आता ही नहीं है। ओर उसको ही डिप्रेशन कहा जाता है। क्या हमारे पास उसके अलावा सोचने को कुछ भी नहीं है? इंसान को लगता है अब कुछ नहीं बचा अब मुझे मर ही जाना चाहिए। बट जो बचा हुआ होता है वह उसको दिखता नहीं है।
छोटी छोटी बातों से लोग डिप्रेशन में आ जाते है। ओर उसको ही आदत बना लेते है अपना स्वभाव बना लेते है। भारत में तकरीबन 9 करोड़ लोग मानसिक बीमारी से लड़ रहे है W H O के पास भारत के लिए 10लाख लोगों पर 1 ही मनोचिकित्सक है। तो एक साइसेट्रिक कितने लोगो का इलाज कर पाएगा? क्यू लोग इतने स्ट्रोंग नहीं है कि खुद के मन पर काबू कर पाए। हस के सबसे बात करके प्रॉब्लम शेयर करके खुद का इलाज खुद कर पाए।
आपने यह तो सुना ही होगा कि सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग? लोग कहते है कि तू ऐसा है या तू ऐसी है तो क्या उसके कहने से ऐसे हो जाते है? साथ में यह भी पता होना चाहिए कि कुछ लोग कहेंगे लोगो का तो काम है केहना। शेक्सपीयर का एक फेमस प्ले है हेमलेट उसमे हेमलेट ऑफिलिया को गुस्से में कहता है गो टू ननरी। ननरी का मतलब है वह प्लेस जहां चरित्रहीन लोग रहते है और ननरी का दूसरा भी मतलब है प्लेस फोर प्योर वुमन। यह सुनकर ऑफिलिया उदास जाती है और सूइसाइड कर लेती है। क्या ऑफिलिया सामने कुछ बोल नहीं सकती? यह सब तो प्ले में हुआ है। पर ऐसा ही रियल लाईफ में भी होता है कोई एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का रिमोट बनना चाहता है उस पे कन्ट्रोल करना चाहता है। ओर धीरे धीरे प्रॉब्लम आने लगती है।
जो हम चाहते है वैसा होता नहीं ओर जो हम करते है उसको लोग चाहते नहीं ओर उसको ही हम इतना सोचते है कि हमारे अंदर कोई दूसरा खयाल आता ही नहीं है। ओर उसको ही डिप्रेशन कहा जाता है। क्या हमारे पास उसके अलावा सोचने को कुछ भी नहीं है? इंसान को लगता है अब कुछ नहीं बचा अब मुझे मर ही जाना चाहिए। बट जो बचा हुआ होता है वह उसको दिखता नहीं है।
छोटी छोटी बातों से लोग डिप्रेशन में आ जाते है। ओर उसको ही आदत बना लेते है अपना स्वभाव बना लेते है। भारत में तकरीबन 9 करोड़ लोग मानसिक बीमारी से लड़ रहे है W H O के पास भारत के लिए 10लाख लोगों पर 1 ही मनोचिकित्सक है। तो एक साइसेट्रिक कितने लोगो का इलाज कर पाएगा? क्यू लोग इतने स्ट्रोंग नहीं है कि खुद के मन पर काबू कर पाए। हस के सबसे बात करके प्रॉब्लम शेयर करके खुद का इलाज खुद कर पाए।