दिल के द्वार में प्रवेश रद है,
अब ना कोई लौटे, ना कोई कदम बढ़े।
जिसने भी दस्तक दी, ज़ख़्म देकर गया,
हर चाहत यहाँ खून में डूबी स्याही बन गई।
आँखों ने रो-रोकर दरिया बहा दिया,
पर किसी ने भी पलट कर नहीं पूछा क्या हुआ?
एक उम्मीद थी जो हर रोज़ सजती थी,
अब वो भी उदासी के आगोश में बुझ गई।
वो कहते थे "हमेशा साथ देंगे"
आज उन्हीं की परछाईं भी नज़र नहीं आती।
जिस दिल को मंदिर समझा था कभी,
अब वहाँ वीरानी की चुप्पी सजती है।
हर वादा पत्थर बना गिरा है दीवारों पर,
हर ख़्वाब कब्र बन गया इस दिल के शहर में।
अब साँसें भी इजाज़त लेती हैं जीने की,
क्योंकि दिल ने हर रिश्ता बंद कर दिया है बिना पूछे ही।
कोई मत आना अब इस उजड़े हुए घर में,
जहाँ मोहब्बत लहू बनकर बह चुकी है।
यहाँ हर कोना गवाही है टूटन की,
यहाँ हर सन्नाटा एक चीख छुपाए बैठा है।
'दिल के द्वार में प्रवेश रद है'
क्योंकि अब ये दिल… सिर्फ़ तन्हाई के लिए धड़कता है।
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